दोस्ती एक खूबसूरत रिस्ता

चाहत की ज़मी पर जब दोस्ती का पौधा लगता है तो यह नहीं देखा जाता जमीं की कहाँ की

है इसका मालिक कौन है , मिटटी किस वतन की है न ज़मी की पहचान होती है ,न मिटटी

की पहचान होती है ,और न ही उस पेड़ का रंग रूप होता है, न ही उस पेड़ का नाम होता

, यदि होता है तो उस पेड़ से निकलने वाले फूल का उसका अपना रंग होता है , उसमे एक

सुगंध होती है जो सारे रिश्तों की सुगंध से अलग होती है , जो इस समाज ने बनाये हैं

और वो सुगंध ही उस पेड़ की जड़ है या यूँ कहें की वह सुगंध ही दोस्ती का वजूद है वह

सुगंध और कोई नहीं उसका नाम है विश्वास , जी हाँ विश्वास जो दोस्ती की बुनियाद है क्या

फर्क पड़ता है की वह कौन है किस खानदान का है ,उसकी उम्र क्या है , किस जाति का

है ,किस देश का रहने वाला है क्या उसका वजूद है इन सबसे कोई फर्क नहीं पड़ता ये सब

के ठेकेदारों के बनाये हुए नियम हैं लेकिन सच्ची दोस्ती मैं इसकी कोई अहमियत नहीं होती

फर्क पड़ता है तो विचारों के न मिलने से , भावनाओं को न समझने से , कयोंकि दोस्ती का

नियम है की जहाँ विचारों का संगम हो उसी का नाम दोस्ती है जिस प्रकार किसी ने भगवान्

को नहीं देखा ,न ही उसके रंग रूप का वर्णनं कर सकते हैं , न ही उसका आकार बता सकते

, लेकिन फिर भी हम सब भागवान को मानते हैं ,उसमे आस्था रखते है , उसके प्रति अच्छे

विचार रखते हैं , इस विस्वास से की कोई भगवान् है पर कौन ? कोई नहीं जानता ठीक उसी

प्रकार दोस्ती है दोस्ती कोई वस्तु नहीं ,बाजार मैं बिकने वाली सामग्री नहीं, ये एक जज्बा हैं ,

खुदा की एक नेमत है ये सागर से गहरा आकास सा विशाल है इसे एक शब्द मैं व्यक्त नहीं

किया जा सकता ये तो हवन कुंद से निकले धुए के समान , दीपक के लौ की तरह पवित्र है

न तो इसे किसी ने देखा है और न ही किसी ने समझा है फिर भी बिना समझे चाँद लोगों ने

इसकी परिभाषा को नस्त कर दिया है कुछ लोगो ने दोस्ती को गलत समझ लिया है , जिस

कारण आज दोस्ती का मतलब बदल गया है

जबकि दोस्ती तो वो जज्बा है जो दो इंसानों को इंसानियत के रिश्ते मैं बांधता है और उसे

एक सही राह दिखता है कोई फर्क नहीं पड़ता यदि दोस्ती सच्चे दिल से निभाई जाय ,इसमें

तो स्त्री पुरुष ,न धर्म मजहब का कोई भेद होता है और न ही लड़का लड़की का कोई फर्क न

के इस पार या उस पार की कोई रेखा , न उम्र की कोई सीमा न जन्म का कोई बंधन , इन

सब का कोई अर्थ नहीं रह जाता, फर्क है तो उस समझ का उस सोच को जो आज मानव की

रग -रग मैं बस्ती जा रही है ---------------------------------आनंद गोपाल सिंह बिष्ट




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1 Respones to " "

बेनामी ने कहा…

आनंद जी आपका हिंदी ब्लॉग जगत में स्वागत है... आशा है आपसे नए नए विषयों पर सार्थक लेख मिलेंगे ... मंगलकामनाएँ


18 जनवरी 2011 को 5:34 pm बजे

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शैल सूत्र स्‍नेही

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