बस्ती दिल जालों की है
दिल तोड़ने की अदा है
सागर मे गहरा पानी है
कश्ती लेकिन कागज की है
बेवफाई की खुसबू
कुछ जानी पहचानी सी है
हुस्न के मीना बाजारों मे
इंसानों की क्या गिनती है
आनंद के सच कहने पर
यारो ये दुनिया हंसती है
महँगी है इज्जत की रोटी
अबला की इज्जत सस्ती है
--------- आनंद गोपाल सिंह बिष्ट
Tags: कविता
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